दोआबा : अंक - 13




इस अंक में : 

रघुवीर सहाय : भाषा की पूजा
कथा- डायरी : जाबिर हुसेन

दरीचा :
चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी : युग बदला
पीयुष नारायण : एक कैंसर सर्वाइवर की डायरी

उपन्यास अंश :
रामधारी सिंह दिवाकर : केंकड़े के बच्चे
उषाकिरण खान :बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे
मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी : उड़ने दो ज़रा
निलय उपाध्याय : पहाड़

कहानी :
तबस्सुम फ़ातिमा : बेनिशां
शाइस्ता फ़ाखरी : कुंवर फ़तेह अली
मंगलमूर्ति : बूढ़ा पेड़


कविता :
पंकज सिंह
सुधीर सक्सेना
प्रियदर्शन
राजेन्द्र नागदेव
कुमार विक्रम
भारत भूषण आर्य

समीक्षा / संवाद : रामधारी सिंह दिवाकर / योगेन्द्र / सीमांत सोहल / मनमोहन सरल / नासिरा शर्मा / क़ासिम खुर्शीद / सुरेन्द्र किशोर / प्रभात खबर

... पूरा का पूरा रचनात्मक साहित्य अंतत: कुशल ढंग से बोला गया झूठ ही तो है
जो न होता तो ज़िंदगी के सच हमारी समझ में कैसे आते
कायदे से सच को झूठ का आभारी होना चाहिए
झूठ है इसलिए सच का मोल है।
-अंक में प्रियदर्शन !
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संपादक: जाबिर हुसेन,
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