दोआबा, अंक 11




दोआबा के इस अंक में - 

समाज-दर-समाज
हाशिए पर ख़ानाबदोश: जाबिर हुसेन
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद: दस्तावेज़
मीडिया और आदिवासी: हरिराम मीणा


कविता:
विमल कुमार
किरण अग्रवाल
राजेन्द्र नागदेव
आर. चेतनक्रांति
पूनम सिंह
राहुल राजेश
अरविन्द श्रीवास्तव
शिवनारायण
नरेन्द्र पुण्डरीक

कहानी:
देवेन्द्र सिंह
कमलरंगा

आत्मगत:
मधुरेश से पल्लव की बातचीत
मंगलमूत्र्ति: कुछ मैं कुछ वे

संवाद:
हरिराम मीणा/ममता कालिया/ज्ञानप्रकाश विवेक/अरविंद श्रीवास्तव/हितेश कुमार सिंह

... प्रेम क्या होता है इसका भी अनुभव नहीं था
माँ डोलती रही पिता की ही सांसों में पूरी उम्र
खाती रही हिचकोले और
असरहीन होकर पिता जीते रहे अपनी उम्र
मां और पिता के इस समय के बाद
आया मुझ जैसे लोगों का समय
जिसमें समय की धूप को
हम तक रोके रहीं पिता की छायाएं ...
                       - नरेन्द्र पुण्डरीक

साझे सपनों को साकार करता 'दोआबा' अंक - 10



    'दोआबा'  के इस अंक में  कविता एवं कहानियों में सिएथल, मीरा कुमार, स्नेहमयी चैधरी, सोनिया सिरसाट, राजेन्द्र नागदेव, राजकुमार कुम्भज, रामकुमार आत्रेय, सुशील कुमार, अशोक गुप्त, भारत भूषण आर्य और ज्ञानप्रकाश विवेक सम्मलित हैं। मीरा कांत का एकल नाटक- गली दुल्हनवाली, आत्मगत में मधुरेश और मनमोहन सरल का आलेख - भारत की आत्मा के चितेरे थे हुसेन के साथ संवेदना व वैचारिकता से पूर्ण संपादक जाबिर हुसेन के संपादकीय- ... मैं तुम्हारे शहर आऊँगा, सोहा, फिर आऊँगा... गहन सूक्ष्मता संजोए यथार्थ व संवेदनाओं का खूबसूरत कोलाज है।
    इस अंक में प्रकाशित मीरा कुमार  की कविता ‘साझा सपने’ की एक बानगी-
    है तुम्हारी पलकों पर इन्द्रधनुष
    उसके रंग मेरी आंखों में तैर रहे
    तुममें और मुझमें
    ये सपनों की कैसी साझेदारी है
    ...........
    ........      - अध्यक्ष, लोक सभा, नई दिल्ली।

दोआबा / संपादकः जाबिर हुसेन
सी-703, स्वर्ण जयंती सदन, डा बी डी मार्ग, नई दिल्ली 110 001.
मोबाइल- 09868181042.