भारत विभाजन के विस्थापितों पर...

अंक - 4
दोआबा का यह अंक मुख्यतः भारत विभाजन के विस्थापितों को लेकर लिखी गई हिंदी कहानियों की बानगी पेश करता है। इस विषय पर अन्य, और भी सफ़ल, कहानियां लिखी गई है,जिन्हें इस अंक में शामिल करने पर हमारे चयन में और भी बेह्तरी आ सकती थी। लेकिन हमारे अनुभवों ने हमारी ज़िंदगी में कुछ ऐसी कैफ़ियत पैदा कर दी है कि बेहतरी के अहसास से परहेज़ करने की ख़्वाहिश होने लगी है। हर अंक में हम जानबूझ कर भी कुछ ऐसी कमियां ज़रुर छोड़ जाते हैं, जो हमारे इरादों को बेहतरी के अहसास से दूर रखे, और आगे की कोशिशों के लिए हमारा हौसला भी ज़िंदा रखें।
- संपादक


वैसे तो भारत का विभाजन उसके इतिहास की सबसे भयानक त्रासदी है और उस विभाजन के परिणामस्वरुप बड़े पैमाने पर करोड़ों लोगों का जो विस्थापन हुआ, वह भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के इतिहास को सबसे यातनादायक और लंबे काल तक असंख्य लोगों के जीवन को प्रभावित करनेवाली भयानक दुर्घटना है। इतने बड़े पैमाने पर जनसंख्या का विस्थापन मानव समाज के इतिहास में कम ही हुआ है। जहां तक उसके दूरगामी प्रभाव का सवाल है तो यह कहा जा सकता है कि 1947 से अब तक वह विस्थापन हिन्दुस्थान, पाकिस्तान और बंगलादेश की राजनीति,संस्कृति और साहित्य को अनेक रूपों में प्रभावित करता रहा है और आज भी कर रहा है।
- मैनेजर पांडे


भारतीय इस्लाम विजेताओं के माइग्रेशन का अद्वितीय उदाहरण है। विजेता अपने मूल देश से सांस्कृतिक रुप से इतनी दूर चले आये हैं कि आज अरब के मुसलमान इन्हें मुसलमान मानने को तैयार नहीं। वे उन्हें हिन्दी कहते हैं।
- विष्णु खरे


विभाजन और विस्थापन एक भयानक दर्द-सा था जो अब दब गया है। विभाजन का यह दर्द एक सूई की तरह है, जिसे जब और जहां चुभता है वह इन विषयों पर लिखता है।
- पद्मा सचदेव


इस उपमहाद्वीप का विभाजन राष्ट्र्वाद के नाम पर हुआ और धर्म उस राष्ट्र्वाद का एक महत्व्पूर्ण अस्त्र था। दुर्भाग्य की बात यह है कि राष्ट्र्वाद कुछ समय के लिये तो एक धर्म के अनुयायियों को एक सूत्र में बांध सकता है लेकिन लंबे अरसे तक उसे एकजूट करके नहीं रख सकता।
- इम्तियाज़ अहमद

विस्थापन की समस्या को सिर्फ़ बटवारे से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। विस्थापन का इतिहास विभाजन के इतिहास से बहुत पुराना है। मारीशस या त्रिनिदाद जो लोग गये वो डेढ़ दो सौ वर्ष पहले गये थे। शुरू में वे भी विस्थापित थे पर अब वे उस देश का हिस्सा बन गये हैं।
केदारनाथ सिंह


जब तक मेरे सामने वाले घर में रोशनी जलती है
मेरे कमरे की दीवार पर
उस घर की परछाइयां चलती रह्ती है
· गुलजार

इस अंक के रचनाकार गुलज़ार,अजित कुमार, विजय शंकर,राजेन्द्र राजन,राजेन्द्र नागदेव, मधुरेश, कमाल अहमद, मंगलेश डबराल,विष्णु खरे, असगर वज़ाहत, इंतेज़ार हुसेन, इम्तियाज़ अहमद, केदारनाथ सिंह, कृष्ण बलदेव वैद, कृष्णा सोबती, कर्तार सिंह दुग्गल, गंगा प्रसाद विमल, जोगिन्द्र पाल, निर्मला देशपांडे, देवेन्द्र इस्सर, द्रोणवीर कोहली, पद्मा सचदेव, महीप सिंह, मीरा कांत, मैनेजर पांडे, मोहम्मद हसन, राजेन्द्र यादव, बिपिन चंद्रा, विष्णु प्रभाकर,श्याम बेनेगल, अज्ञेय, कमलेश्वर, मोहनराकेश, यशपाल, रांगेय राघव, शिवानी, संजीव, स्वयं प्रकाश````````` आदि।