दोआबा, समय से संगत, अंक -1

अंक - 1









जारी रह्ती है बहस
बहस जारी है और
बहस में शामिल लोगों का द्दयान
विषय पर केन्द्रित है
जिक्र करना इस बात का जरुरी है
क्योंकि
कभी-कभी ( बल्कि ज्यादातर ही)
बहसें भटक जाती है अपने विषय से
जब होता है ऐसा तो
किसी निष्कर्ष को नहीं पहुंचती है बहसें
बीच में हीं नदी की लहरों की तरह
ऐक दूसरे से मिलकर खो जाती है बहसें
ऐसे में बहस शुरु करने वलों को
याद दिलाना जरुरी हो जता है
बहस का प्रस्थान विंदु क्या है




आज जब कोई पूछता है कि आप नारी को इतनी गहराई से कैसे अभिव्यक्ति देते हैं, तो मै केवल मुस्कुराता हूं क्योंकि मै जानता हूं, कहानी में आयी वह लाचार औरत और कोई नहीं, मेरी मां है, जो कभी पत्नी थी, मां थी, सास थी, गृहिणी थी, जिसे मै रोज टुकड़ों में बंटते हुए देखा करता था ।



गहरी थकान और हताशा लिए
लौट आए हैं पिता
झुके कंधे गर्द भरे चेहरे पर
आहत उम्मीदों की लहूलुहान खरोंचे
आंखों के कोए में
समुद्री नमक का भहराता टीला
होंठों पर मुर्दा चुप्पी लिए
सपनों की शव-यात्रा से
-पूनम सिंह