दोआबा
अंक- 6
दलित लेखक साहित्य को मनोरंजन की चीज नहीं मानते, उनके लिए साहित्य वह विचार है, जो क्रांति और प्रतिक्रांति दोनों में अपनी भूमिका निभाता है। यह साहित्य की क्रांति ही है, जो कबीर ने की थी और जिसकी प्रतिक्रांति में आज भी रामचरितमानस का सर्वाधिक प्रचार किया जाता है। इसलिए दलित चिंतकों ने कभी भी साहित्य को मनोरंजन की चीज नहीं माना। उन्होंने क्रांति के लिए साहित्य की सर्जना की। पत्रकारिता भी साहित्य का ही एक अंग है। उन्नीसवीं शताब्दी में पत्रकारिता के महत्व को दलित चिंतकों ने भी महसूस कर लिया था। इसी आवश्यकता के तहत देश भर में दलित चिंतकों ने अपने कई अखबार निकाले। स्वंय डा. अंबेडकर ने कई अखबार निकाले थे, जिनकी दलित-मुक्ति के आंदोलन में क्रांतिकारी भूमिका थी।
-कंवल भारती
-कंवल भारती
‘हिंदी नवजागरण काल की पत्रकारिता और दलित प्रश्न’ से
सोच लिया है मैंने
मैं अहसास को अहसास लिखूंगी अहसास की तरह
हंसी को हंसी
आंसू को आंसू
बचपन को बचपन
यौवन को यौवन
मौसम को मौसम
रंग को रंग
लहू को लहू
इंसान को इंसान
मैं हिंदू और मुसलमान, ब्राह्मण और चमार नहीं लिखूंगी
-किरण अग्रवाल
‘मैं झूठ नहीं लिखूँगी’ कविता से
इस अंक के रचनाकार-
अरुण कुमार, हरिराम मीणा, अशोक सिंह, संजय कृष्ण, पूनम सिंह, नरेश कुमार उदास, पूरन हार्डी, मंजूर एहतेशाम, देवेन्द्र सिंह, मनमोहन सरल, हरदर्शन सहगल, प्रेम कुमार, उर्मि कृष्ण, वासुदेव, सकीना अख्तर, किरण अग्रवाल, नरेन्द्र पुण्डरीक, परमिंदरजीत, मोहनजीत, कैलाश दहिया, राहुल राजेश, नीलोत्पल, मधुरेश, सुरेश पंडित, कंवल भारती, से रा यात्री, राजेन्द्र राजन और गिरिराज किशोर।
-संपादकः जाबिर हुसेन
सम्पर्कः 09431602575/09868181042
e.mail: doabapatna@gmail.com