दोआबा, अंक 11




दोआबा के इस अंक में - 

समाज-दर-समाज
हाशिए पर ख़ानाबदोश: जाबिर हुसेन
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद: दस्तावेज़
मीडिया और आदिवासी: हरिराम मीणा


कविता:
विमल कुमार
किरण अग्रवाल
राजेन्द्र नागदेव
आर. चेतनक्रांति
पूनम सिंह
राहुल राजेश
अरविन्द श्रीवास्तव
शिवनारायण
नरेन्द्र पुण्डरीक

कहानी:
देवेन्द्र सिंह
कमलरंगा

आत्मगत:
मधुरेश से पल्लव की बातचीत
मंगलमूत्र्ति: कुछ मैं कुछ वे

संवाद:
हरिराम मीणा/ममता कालिया/ज्ञानप्रकाश विवेक/अरविंद श्रीवास्तव/हितेश कुमार सिंह

... प्रेम क्या होता है इसका भी अनुभव नहीं था
माँ डोलती रही पिता की ही सांसों में पूरी उम्र
खाती रही हिचकोले और
असरहीन होकर पिता जीते रहे अपनी उम्र
मां और पिता के इस समय के बाद
आया मुझ जैसे लोगों का समय
जिसमें समय की धूप को
हम तक रोके रहीं पिता की छायाएं ...
                       - नरेन्द्र पुण्डरीक